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प्रोजेक्ट IDI (प्रोजेक्ट आशा) के CBR कार्यकर्ताओं की एक अंतर्दृष्टि

प्रोजेक्ट आईडीआई / प्रोजेक्ट आशा के फ्रंटलाइन कार्यकर्ता अपने शब्दों में अपने काम के बारे में साझा करते हैं।

दो सीबीआर कार्यकर्ता एक मोटरसाइकिल पर

कपिल चौधरी और प्रीतम सिंह हर दिन लगभग ८  बजे मथुरा के गाँवों में दिव्यांगता से ग्रस्त बच्चों की पहचान करने के लिए निकल पड़ते हैं
ताकि बच्चे को उन सेवाओं से जोड़ा जा सके जो उसके लिए  और उसके परिवार के लिए मददगार हो। वे ग्राम प्रधान, स्थानीय  आशा/आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं  की सहायता से और कई  बार घर घर जाकर बहुत से ज़रूरतमंद  बच्चों की खोज में सफल हुए हैं ।

कपिल और प्रीतम सीबीआर कार्यकर्ता हैं जिन्हें आईडीआई प्रोजेक्ट (जिसे वृन्दावन में ‘प्रोजेक्ट आशा ’ के नाम से जाना जाता है) का कार्य नियत किया गया है , जो पार्किंस इंडिया और डॉ. श्रॉफ़ चैरिटी आई  हॉस्पिटल  की संयुक्त प्रोजेक्ट है। दोनों ही व्यक्ति इस काम में नए हैं पर परिवार से परिचय बढ़ाना और दिव्यांगता से ग्रस्त बच्चों की जांच करना  इन्होंने बहुत जल्द ही सीख लिया है ।

उन्होंने प्रोजेक्ट आईडीआई और क्षेत्र में काम करने के कुछ महीनों के बाद के अपने अनुभवों को अपने स्वयं के शब्दों में साझा किया है: 

श्रॉफ़-पर्किंस प्रोजेक्ट आईडीआईवृन्दावन में क्या कर रही है?​ 
यह प्रोजेक्ट वृन्दावन और मथुरा क्षेत्र में दिव्यांगता से ग्रस्त बच्चों की पहचान करती है। पहचान के बाद हम उनकी जांच करते हैं और एमडीवीआई के लिए उनका आकलन  करते हैं तथा उन्हें हस्तक्षेप और चिकित्सा सुविधा प्रदान करते हैं।

इस प्रोजेक्ट में आपकी भूमिका क्या है?​
हमारा मुख्य काम दूर और पास के सभी गाँवों में जाना, परिवारों से बातचीत करना और दिव्यांगता से ग्रस्त बच्चों की पहचान करना है। हम अभिभावकों को परामर्श देते हैं कि जांच  और हस्तक्षेप से उनके  बच्चे में सुधार हो सकता है। दिव्यांगता प्रमाण पत्र प्राप्त करने और जब भी संभव हो विभिन्न योजनाओं के तहत एड्स/उपकरण प्राप्त करने में  हम इन परिवारों की सहायता करते हैं।

अब तक आप कितने परिवारों से मिले हैं?​
अभी तक हम 3500 परिवारों से मिल चुके हैं। 

आपने सर्वेक्षण के माध्यम से कितने बच्चों की पहचान की है?​ 
अभी तक हमने करीब 100 दिव्यांगता से ग्रस्त  बच्चों की पहचान की है।

जब आप परिवारों से मिलते हैं तो उनकी क्या प्रतिक्रिया होती है?​
जिन परिवारों से हम मिलते हैं उनमें से अधिकांश हमसे मिल कर उत्साहित और आशान्वित हो जाते हैं कि उनका बच्चा अब बेहतर हो जाएगा। वे सोचते हैं कि हम डॉक्टर हैं और तब हम उन्हें समझाते हैं कि हम डॉक्टर नहीं हैं वरन् पुनर्वास टीम का हिस्सा हैं। हम उन्हें समझाते हैं कि हम यह वादा नहीं कर सकते कि उनका बच्चा पूरी तरह ठीक हो जाएगा पर हम उसमें काफी सुधार ला सकते हैं। जब वे यह सुनते हैं कि उनके बच्चे में सुधार हो सकता है तथा वह कई कार्य कर सकेगा जिनकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी तो वे अत्यंत  प्रसन्न हो जाते हैं।

इन दिनों क्षेत्र में काम करते हुए आपको किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?​अधिकतर समय मौसम बहुत अनुकूल नहीं रहता। कभी झुलसाने वाली गर्मी पड़ती है तो कभी पानी बरसने लगता है और हम पूरी तरह भीग जाते हैं। कई बार रास्ते बहुत संकरे होते हैं और हमें लम्बे समय तक चलना रहता है और कीचड़/ऊबड़खाबड़ सड़कें मोटरसाइकिल चलाने के लिए कठिनाई होती  है। 

इस प्रोजेक्ट की  सबसे अच्छी बात क्या है?​
एमडीवीआई से ग्रस्त बच्चों के जीवन को परिवर्तित करना, परिवार को आशा देना कि उनके बच्चे में सुधार हो सकता है और एक अच्छे उद्देश्य के लिए इतने परिवारों से सम्पर्क बनाना। लोग हमें आशीर्वाद देते हैं, धन्यवाद करते हैं । हम गर्व और आनंद के साथ घर लौटते हैं।

प्रीतम ने साझा किया, “ मुझे अत्यंत गर्व का एहसास होता है कि मैं इस आदर्श प्रोजेक्ट का हिस्सा हूँ। और मैं परिवर्तन ला सकता हूँ हूँ। जब हम गाँवों में जांच के लिए जाते हैं और लोगों तथा परिवारों से मिलते हैं तो वे हमें आशीर्वाद देते हैं। मेरे गाँव के लोग अब मुझे पहचानने लगे हैं।वे मेरा सम्मान करते हैं  मैं जो कुछ कर रहा हूँ उसके लिए मेरा परिवार और मेरे सभी रिश्तेदार मुझ पर गर्व करते हैं।”

एक सीबीआर कार्यकर्ता क्षेत्र सर्वेक्षण के दौरान एक परिवार से सूचना रिकॉर्ड करते हुए
एक सीबीआर कार्यकर्ता क्षेत्र सर्वेक्षण के दौरान पर्यवेक्षण को रिकॉर्ड करते हुए

जैसा कि आप दोनों ही वृन्दावन/मथुरा से हैं तो आप इस कार्य से इस समुदाय के लिए क्या करना चाहते हैं?​
इस प्रोजेक्ट के माध्यम से हम अपने पूरे समुदाय में श्रॉफ़ , पर्किंस इंडिया  और उनकी प्रोजेक्ट के बारे में जागरूकता फैलाना चाहते हैं। हम अपने परिवार और दूर जिलों में रहने वाले  रिश्तेदारों सहित जिनसे भी मिलते हैं उनमें संवेदना जगाना चाहते हैं कि दिव्यांगता से ग्रस्त बच्चों की पहचान होनी चाहिए और उनको सेवा उपलब्ध करानी चाहिए जिससे वे ऐसा कुछ कर पाएं जिसकी कल्पना उनके परिवार ने कभी नहीं की। यदि उन्हें कोई  दिव्यांगता से ग्रस्त  बच्चा मिलता है तो वे तत्काल हमें सूचित करें जिससे बेहतर कदम उठाया जा सके।

कपिल ने साझा किया कि, “ मेरे लिए यह सपने का सच होने जैसा है। मैं बचपन से ही समाज सेवा करना चाहता था। इस प्रोजेक्ट के माध्यम से मैं वह सब कुछ कर पा रहा हूँ जो मैं करना चाहता था। हर दिन यह कार्य मुझे प्रोत्साहित करता है। हम ऐसे लोगों से मिले जिन्होंने अपने बच्चेको लेकर  सारी आशा छोड़ दी थी। हमने उनसे बात की , उन्हें समझाया और उनकी आशा को फिर से जगाने में सफल रहे कि हमारी सहायता से उनके बच्चों में सुधार आ सकता है। और यही हमारे काम का सबसे अच्छा हिस्सा है ।”

आपने पर्किंस इंडिया  से क्या सीखा?
कपिल : मैंने कभी नहीं सोचा था कि मथुरा / वृंदावन में कई लोग हैं जो दिव्यांगता से ग्रस्त हैं और उनकी स्थिति क्या है। अब इस प्रोजेक्ट के माध्यम से, मैं सीख रहा हूँ कि यहाँ कई ऐसे लोग हैं। जिन गावों में हम गए उनमें से शायद ही कोई ऐसा गाँव होगा जिसमें कोई दिव्यांगता से ग्रस्त बच्चा या व्यक्ति न मिला हो और हम इनकी मदद करने के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं।

प्रीतम : मैंने विभिन्न दिव्यांगताओं के बारे में जाना और यह भी जाना कि कैसे यह दिव्यांगताएं बच्चों को अलग अलग तरह से प्रभावित कर सकते हैं।

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