स्कूल एवं सामुदायिक जीवन से अगल-थलग रहने वाले बच्चों की आबादी के बारे में जानने के लिए अनुभवी नेत्र विशेषज्ञ और तकनीशियन डॉ.श्रॉफ धर्मार्थ नेत्र चिकित्सालय (एससीइएच) वृन्दावन केन्द्र के सम्मेलन कक्ष में प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए एकत्र हुए। ये नेत्र पेशेवर लोगों की दृष्टि को सुधारने और दृष्टि को वापस लौटाने में सिद्धहस्त हैं; और हो सकता है की एक किसान खेत में बोवाई करने, एक बुनकर शिल्पकला के लिए और एक बच्चा अन्तत: ब्लैकबोर्ड पर लिखे अक्षरों को स्पष्टता से पढ़ने में सक्षम हो जाए।
परन्तु इस दिन, वे पर्किंस इंडिया के कार्यक्रम समन्वयक सुप्रिया दास से मिले और एक नई चुनौती का सामना करने के लिए तैयार थे। सुप्रिया ने उन्हें दृष्टि दिव्यांगता और अन्य अतिरिक्त दिव्यांगता (एमडीवीआई) से ग्रस्त बच्चों की आवश्यकताओं को उनके साथ साझा किया। इस तरह की दिव्यांगताओं का संयोजन उन बच्चों को नेत्रों की देखभाल की व्यवस्था, स्कूल और सामुदायिक जीवन से प्राय: पृथक कर देता है।
प्रशिक्षण सत्र के दौरान दास ने स्पष्ट किया कि बहु दिव्यांगता से ग्रस्त बच्चों में दृष्टि दिव्यांगता होने की संभावना अधिक होती है जिसको अधिकतर अनदेखा कर दिया जाता है और उनका ठीक से आकलन नहीं किया जाता। जब वे दृष्टि आकलन से बाहर कर दिए जाते हैं तो ये बच्चे अंतत: प्रारंभिक हस्तक्षेपों से वंचित रह जाते हैं जिससे उनके सीखने की क्षमता में व्यापक सुधार हो सकता है और जीवन में बच्चा आगे बढ़ सकता है।
संयुक्त रूप से श्रवण एवं दृष्टि दिव्यांगता से ग्रस्त (या बधिरान्धता) बच्चों के बारे में जानने के इच्छुक एक विज़न तकनीशियन ने उत्सुकतावश पूछा, “पर ये बच्चे बातचीत कैसे करते हैं?” दास ने एक ऐसे बच्चे का उदाहरण दिया जो श्रवण एवं दृष्टि दिव्यांगता से ग्रस्त है, वह अपनी अलग-अलग परिस्थिति के अनुरूप स्पर्शनीय सांकेतिक भाषा, चिह्न, या वस्तु के प्रयोग से सम्प्रेषण करता है-पर उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि उचित सहायता और हस्तक्षेप से हर बच्चा सम्प्रेषण कर सकता है।
अस्पताल के सभी कर्मचारियों के लिए इस प्रशिक्षण की पेशकश की गई, सिर्फ उन्ही के लिए ही नहीं जो बच्चों के जांच और पुनर्वास के लिए कार्यरत हैं। दास ने साझा किया, “इस बात की बहुत संभावना रहती है कि एमडीवीआई से ग्रस्त बच्चे बिना पहचाने ही रह जाते हैं। इसलिए इन बच्चों के साथ काम करने वाले केवल पुनर्वास पेशेवर का ही नहीं हर एक का दायित्व है कि वह एमडीवीआई के लक्षण और विशिष्टता को पहचानने में सक्षम बने, जिससे ये बच्चे हस्तक्षेप प्राप्त कर सकें और सहायता सेवाओं से जुड़ सकें। “
अस्पताल के कर्मचारियों में जागरूकता फैलाने का लाभ अन्तिम सत्र की समाप्ति के कुछ समय बाद ही सामने आया, एक युवा प्रशिक्षार्थी दास के पास आई और उसने उनसे साझा किया, “इसी तरह का एक बच्चा मेरे गाँव में भी है। कृपया मेरे गाँव को भी इस परियोजना में सम्मिलित कर लीजिए जिससे आप उससे मिल सकें।”
एससीइएच वृन्दावन केन्द्र की सहभागिता के साथ पर्किंस इण्डिया यह सुनिश्चित करने के लिए कार्यरत है कि दृष्टि बाधिता के साथ बहु दिव्यांगता से ग्रस्त बच्चे (एससीइएच) नेत्र स्वास्थ्य व्यवस्था में सक्रिय रूप से सम्मिलित कर लिए जाएं। एक साथ मिल कर वे एक नई पहल परियोजना पहचान और हस्तक्षेप (आयडीआय) का प्रारम्भ कर रहे हैं। यह सहयोग वृन्दावन के आसपास के गांवों में आयोजित शिविरों और घर घर जा कर दृष्टि दिव्यांगता तथा अन्य दिव्यांगता से ग्रस्त बच्चों की जाँच पर बल देता है। एक बार जब एमडीवीआई से ग्रस्त बच्चे को खोज लिया जाता है और उनकी पहचान कर ली जाती है तो परियोजना आईडीआई उन्हें प्रारंभिक हस्तक्षेप सेवाओं से या अन्य स्थानीय हस्तक्षेप केंद्रों से जोड़ देती है।